Wednesday, May 30, 2007

मजरूह रूह..

एक मजरूह रूह,दिन एक,
उड़ चली लंबे सफ़र पे
थक के कुछ देर रुकी
इक वीरान सी डगर पे
गुजरते राह्गीरने देखा उसे
तो हैरत से पूछा उसे,
'ये क्या हुआ तुझे?
लहू टपक रहा है कैसे
ये नीर झर रहा कहाँ से ?'
रूह बोली,था एक कोई
जल्लाद,जैसे हो तुम्ही!
पंख मेरे जलाए
दिल किया छलनी
कैद्से हूँ उड़ चली!
था रौशनी औरोके लिए
पथदीप हज़ारोंके लिए!
मुझे गुमराह किया
लौने हरवक्त जलाया (अपूर्ण)

कीमत खुशीकी...

हर हंसीकी कीमत
अश्कोंसे चुकायी हमने
पता नही और कितना
कर्ज़ रहा है बाक़ी
आंसू है कि थमते नही!
जिन्हे खोके हम रोये
जिनकी खातिर तनहा हुए
वो कहॉ है येभी
अब हमे खबर नही
हाथ उनके लिए
उठते है अब भी
दुआ दिलसे निकलती
है अब भी उनके लिए!
पलके मून्द्केभी
नींदे है उड़ जाती
वीरान बस्तीमे दिलकी
वो बस्ते है आजभी!
दिलने ऐसे बंद किये
दरवाज़े,कि ना वो है
निकल पाते,नाही,
दूसरा आये कोई
येभी गुंजाईश नही !
हैरत तो ये है,
दूरसेभी हमारी कैसी
ख़ूब खबर लेते है,
हमारी हंसीपे पहेरे
उनके लगे है
आये तो सही होटोंपे
gam
पासहीमे रहेते है
हल्कीसी क्यो ना हो
हर हंसी झपट लेते है!

ना खुदाने सताया...

ना खुदा ने सताया
ना मौतने रुलाया
रुलाया तो ज़िन्दगीने
माराभी उसीने
ना शिकवा खुदासे
ना गिला मौतसे
थोडासा रेहेम माँगा
तो वो जिन्दगीसे
वही ज़िद करती है
जीनेपे अमादाभी
वही करती है
मौत तो राहत है
वो चूमके पलकें,
गहरी नींद सुलाती है!
ये तो जिन्दगी है
जो नींदे चुराती है!
पर शिकायत से भी,
डरती हूँ उसकी,
ग़र कहीँ सुनले,
ना जीनेके क़ाबिल रखे,
ना मरनेकी इजाज़त दे,
एक ऐसा ,पलट के,
तमाचा जड़ दे...!

हकीकत नही तो ना सही....

किसीके लिए मैं हकीकत नही
तो ना सही !
हू मेरे माज़िकी पर्छायी ,
चलो वैसाही सही !
जब ज़मानेने मुझे
क़ैद करना चाहा
मैं बन गयी एक साया,
पेहचान मुकम्मल मेरी
कोई नही तो ना सही !
रंग मेरे कयी
रुप बदले कयी
किसीकी हू सहेली
किसीके लिए पहेली
हू गरजती बदरी
या किरण धूपकी
मुझे छू ना पाए कोई,
मुट्ठीमे बंद करले
मैं वो खुशबू नही.
जिस राह्पे हू निकली
वो निरामय हो मेरी
इतनीही तमन्ना है.
गर हो हासिल मुझे
बस उतनीही जिन्दगी
जलाऊं अपने हाथोंसे
झिलमिलाती शमा
झिलमिलाये जिससे
एक आंगन,एकही जिन्दगी.
रुके एक किरण उम्मीद्की
कुछ देरके लियेही सही
शाम तो है होनीही
पर साथ लाए अपने
एक सुबह खिली हूई
र्हिदय मेरा ममतामयी
मेरे दमसे रौशन वफा
साथ थोड़ी बेवाफायिभी
जीवनमे पूरे, कयी
सारे चहरे मेरे,
ओढ़े कयी नकाब भी
अस्मत्के लिए मेरी
था येभी ज़रूरी
पहचाना मुझे?
मेरा एक नाम तो नही...

Sunday, May 27, 2007

A blog in 3 lanuages. हिंदी, मराठी, english.

में इस ब्लोग पे हिंदी, मराठी और अंग्रेजी में लेखन करूंगी।

मी ह्या ब्लोग वर हिंदी, मराठी आणि इन्ग्रजित लेखन करणार आहे।

I shall be posting articles in Hindi, Marathi and English on this blog.