Monday, October 29, 2007

दयाकी दृष्टी: सदाही रखना ! १०

(कुछ जगाहोपे एडिटिंग नही हो पाई है....क्षमा चाहती हूँ)

ऐसी कितनीही छुट्टियाँ आयी और गयी। आशा बच्चों का साथ पाने के लिए तरसती रही और बच्चे उसे तरसाते रहे। माँ का त्याग उनके समझ मे आयाही नही,बल्कि माँ-बापने अपनी जिम्मेदारी झटक के सेठना आंटी पे डाल दी,यही बात कही उनके मनमे घर कर गयी। बारहवी के बाद राजीव मेडिकल कॉलेज मी दाखिल हो गया। मिसेस सेठना सारा खर्च उठाती रही। बादमे संजूभी मेडिकल कॉलेज मी दाखिल हो गया।
पोस्ट ग्राजुएशन के लिए पहले राजू और फिर संजू इस तरह दोनो ही अमेरिका चले गए। मिसेस सेठ्नाने फिर उनपे बोहोत खर्च किया।

राजू एअरपोर्ट चलने से पहले दोनो पती-पत्नी राजूको विदा करने मिसेस सेठना के घर गए। आशाकी आँखों से पानी रोके नही रूक रहा था। राजूको गुस्सा आया,बोला,"माँ लोगों के बच्चे परदेस जाते हैं तो वे मिठाई बाँटते हैं, और यहाँ तुम हो कि रोये चली जा रही हो!!अरे मैं हमेशाके लिए थोडेही जा रहा हूँ??लॉट कर आऊँगा। एक बार कमाने लगूँगा तो अच्छा घर बना सकेंगे, और कितनी सारी चीजे कर सकेंगे। ज़रा धीरज रखो।"
"बेटा,अब तुम्हारीही राह तकती रहूँगी अपने बच्चों से बिछड़ कर एक माँ के कलेजेपे क्या गुज़रती है,तुम नही समझोगे ,"आशा आँचल से आँसू पोंछते हुए बोली।
अपूर्ण

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