आशा पैसे लेके घर आयी। उसने वो लिफाफा वैसाही रख दिया। बहुओंके लिए कुछ लेगी कभी सोंचके। इसी तरह कुछ समय और बीत गया। एक दिन सहजही मिसेस सेठना का हालचाल पूछने वो उनके घर पोहोंच गयी। मिसेस सेठना हमेशा बडेही अपनेपन से उससे मिलती। तभी उनका फ़ोन बजा, उनकी बातों परसे आशा समझ गयी कि फ़ोन राजूका है।
कुछ समय बाद मिसेस सेठना गंभीर हो गयी और सिर्फ"हूँ,हूँ" ऐसा कुछ बोलती रही। फिर उन्होंने आशा को फ़ोन पकडाया और खुद सोफेपे बैठ गयीं......
मुद्दतों बाद आशा राजूकी आवाज़ सुननेवाली थी। "हेलो " कहते,कह्तेही उसकी आँखें और गला दोनोही भर आये.....और फिर वो खबर उसके कानोपे टकराई ........
राजूने शादी कर ली थी, वहीँ की एक हिन्दुस्तानी लड़कीसे........ वहीँ बसनेका निर्णय ले लिया था। वो अपनी माको नियमसे पैसे भेजता रहेगा..... । कुछ देर बाद आशाको सुनाई देना बंद हो गया.......
उसने फ़ोन रख दिया। सुन्न-सी होके वो खडी रह गयी। मिसेस सेठना ने उसे अपने पास बिठा लिया। उनकी आँखों मेभी आँसू थे।
"आशा ,मैं तेरी बोहोत बड़ी गुनाहगार हूँ । मैं खुदको कभी माफ़ नही कर पाऊँगी । बच्चे ऐसा बर्ताव करेंगे इसकी मुझे ज़राभी कल्पना होती तो मैं उन्हें परदेस नही भेजती,"बोलते,बोलते वो उठ खडी हुई।
" राजूने सिर्फ शादीही नही की बल्की अपनी पत्नी तथा उसके घरवालोंको बताया कि उसके माँ-बाप बचपन मेही मर चुके हैं! मुझे....मुझे कह रहा था कि मैं.....मैं इस बातमे साझेदार बनूँ!!शेम ऑन हिम!!भगवान् मुझे कभी क्षमा नही करेंगे....!ये मेरे हाथोंसे क्या हो गया?"
वो अब ज़ोर ज़ोर से रो रही थीं। चीखती जा रही थीं।आशाका सारा शरीर बधीर हो गया था। वो क्या सुन रही थी? उसके बेटेने उसे जीते जी मार दिया था??उसे अपने गरीब माँ-बापकी शर्म आती थी??और उसने सारी उम्र उसके इन्तेज़ारमे बिता दी थी? ममताका गला घोंट,घोंटके एकेक दिन काटा था!
अंतमे जब वो घर लौटनेके लिए खडी हुई तो उसकी दशा देख कर मिसेस सेठ्नाने अपनी कारसे उसे बस्तीमे छुड़वा दिया। झोंपडीमे आके वो कहीँ दूर शून्यमे ताकती रही। बाहर बस्तीमेके बच्चे खेल रहे थे। उसका आँगन बरसोंसे सूना था। वैसाही रहनेवाला था........
बस्तीके कितनेही लोग उससे जलते थे, लेकिन वो अपने सीनेकी आग किसे बताती??ज़िंदगी ने कैसे,कैसे मोड़ लेके उसे ऐसा अकेला कर डाला था! उसके कान मे कभी उसके छुटकोके स्वर गूँजते तो कभी आँखोंसे रिमझिम सपने झरते। उसका पती जब घर आया तो उसने मनका सारा गुबार निकला, खूब रोई। पती एकदम खामोश हो गया। फिर कुछ देर बाद बोला,"सच अगर तेरी बात सुनी होती,हम पढ़ लिख गए होते तो अपनेही बलबूतेपे बच्चे पढे होते। जोभी पढे होते, ये समय आताही नही।" आशाने कुछ जवाब दिया नही। उस रात दोनोही खाली पेट ही सो गए। सो गए केवल कहनेके लिए, आशाकी आँखोंसे नींद कोसों दूर थी।
अपूर्ण
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1 comment:
लेखन में भावनाओं का उफान रहता है।
क्या किसी फिल्म या टीवी जगत के लोगों ने कहानियों को पढ़ा है। कभी उन्हें भी पढ़वा कर देखिये। शायद कोई सीरियल या फिल्म के लिये ले लें।
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