इस वक़्त मुंबई के गेटवे ऑफ़ इंडिया पार उमड़ा हुआ जनसागर, टीवी पे देख रही हूँ...मन भर आया है...सलामत रहे ये जज़्बा...सलामत रहे मेरा देश...! कहीं ये बात सिर्फ़ आयी गयी न हो जाए..लोग बोहोत जल्दी हर बात भूल जाते हैं....डरती हूँ, कहीं ऐसा न हो...! हमें अब हमारा जोश, हमारी दिलेरी हमारी एकता हर हालमे बनाये रखनी है...आज हमारी रखवाली हमही कर सकते हैं...हमारे चुने गए नेतागण किसी काबिल नही...जबकि येभी सच है की उनका निर्माण किसी प्रयोगशालामे नही हुआ...ये हमारीही माँ बेहनोंके जाये हैं....!तो फिर हम कहाँ चूक गए...चूक रहे हैं ? क्या हमारे परिवारोंमे देशभक्ती के संस्कार नही होते ? क्या हमारी शिक्षा प्रणाली हमारे बच्चों को अच्छे नागरिकत्व की शिक्षा नही देती ? क्या सिर्फ़ इतिहास भूगोल, गणित आदिकी शिक्षा लेके हम अपने आपको शिक्षित कहलाने लगते हैं??
मै अपनी श्रंखला"......एक......दुविधा ", बंद नही करनेवाली, शायद थोड़े धीमी गतीसे आगे बढे। उसके लिखनेके पीछे एक निश्चित मक़सद था....एक भारतीय नारीके प्रति उसके परिवारका, विशेषतः, उसके पतीका दृष्टिकोण...न की मेरा दुखडा रोना....वो तो उस कहानीका एक हिस्सा बनके उभर आया...पाठक सवाल पूछते गए और ये श्रंखला आकार लेती गई।
यही दृष्टिकोण , जब मै अपनी डॉक्युमेंटरी, जो पूरी तरहसे मेरे देशवासियों को समर्पित होगी , बनाने जा रही हूँ, मेरे आड़े आ रहा है...! हैरान हूँ कि जिस व्यक्तीने अपने ३५ साल पोलिस के मेह्कमेमे गुज़ारे, उस मेह्कमेके सवालोंको लेके ही ये डॉक्युमेंटरी बनेगी...उसमे, जातीयवाद, आतंकवाद और सुरक्षा करमी, जिनके हाथ कानून ने किसतरह बाँध रखे हैं, इन सभी मुद्दोकोका विश्लेषण होगा, और देशके एहम व्याक्तियोंके इंटरव्यू लिए जायेंगे...जानकारोंका इन मुद्दोंको लेके क्या कहना है, जो इन मुद्दोंसे जुड़े रहे हैं, वो इस समय क्या कहना चाहते हैं....ये सब का जायजा लिया जाएगा...ये केवल भावनात्मक खेल नही है...एक अभ्यासपूर्ण, लेकिन लोगोंको गहरायीतक सोचनेको मजबूर करनेवाली, झकझोर के रखनेवाली पेशकश होगी। मुझे ज़बरदस्त मेहनत करनी होगी...हर ओरसे सहायताकी दरकार कर रही हूँ...उम्मीद रख रही हूँ...उम्मीद्से बढ़के पा रही हूँ...लेकिन अफ़सोस ! इसी मेहेकमेसे निवृत्त हुए मेरे पतीसे, जो ख़ुद इन शहीदोंको खोके दुखी हैं, मदद्की उम्मीद किसीभी हक़्से नही रख सकती ! दे दी तो एहसान समझना होगा वरना, वे अपनेआपको दुर्लक्षित महसूस करते हैं ! मेरा प्रथम कर्तव्य केवल उनके प्रती होना चाहिए, ये बात मुझे पलभर के लिएभी भूलने नही दी जाती.....खैर...इसी दृष्टीकोन को मै अपनी मलिका मे उजागर कर रही हूँ...ओर इस दृष्टिकोण का असर बच्चों पे होता है, इसलिए इसे उजागर करना ज़रूरी हो गया है...ये मिसालभी मैंने बड़ी सोंच समझके दी है, कि ऐसे गंभीर हालातमे भी एक औरत अगर अपने देशवासियोंके प्रती, पारिवारिक ज़िम्मेदारियाँ पूर्णतया निभाते हुएभी, अपना कर्तव्य निभाना चाहे तो कितनी कठिनाई से उसे गुज़रना पड़ता है, एक अपराधबोध के तले दबके काम करना पड़ता है....कितनी अफ़सोस की बात है...! न जाने ऐसी कितनी महिलाएँ होंगी जो दबके रह जाती होंगी !! उन्हें एक प्रेरक तरीक़ेसे साहस दिलाना चाहती हूँ...!उठो, कि और कोई नही तो मै हूँ ! मै हूँ ना...! आओ, मेरे साथ हाथ मिला सकती हो तो मिलाओ....एक ज्योतसे दूसरी जलाओ...शायद अनंत ज्योतियोंकी एक श्रृंखला हम बना पायें.....! नाउम्मीद ना हो...आज नही तो कल, हमारी दख़ल हमारे परिवारोंको लेनीही पड़ेगी ! हमें येभी ज़िम्मेदारी निभानी है ! एक जागरूक माँ से बढ़के कौन अपने बच्चों को सही राह दिखा सकती है? कोई नही...!
जब सारे देशका प्रतिनिधित्व मुम्बई कर रही है, निर्भयतासे, और वो तीनो ठाकरे अपनी "सेना" के साथ किसी दड्बेमे घुसे हुए हैं, मेरी बहनों, तुम उठो...उठो कि हमारे बच्चों को एक दिशा दिखानी है...कहीँ वो फिर एकबार भटक ना जायें....उन्हें धोकेमे डालके कोई ख़ुद गर्ज़ भटका ना दे ...हमें सतर्क रहना है...हमारे तिरंगेको आकाशमे गाडे रखना है.....वरना ये बारूद्के ढेर पे बैठी हुई दुनिया, बमोंके धमाकोंसे हमें डराती हुई दुनिया, हमारे हर शहीद के बलिदानको बेकार बना सकती है, हर बलिदान ज़ाया जा सकता है....गांधी के पहलेसे लेके आजतक का हर बलिदान निरर्थक हो जाएगा...वो माँ यें, वो वीरांगनाएँ, उनके भाई, बेहेन सब निराश हो तकते रह जायेंगे और दरिन्दे आतंक की आड्मे हमें निगल जायेंगे...!
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Wednesday, December 3, 2008
ये जज़्बा सलामत रहे !
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