Tuesday, February 17, 2009

एक संस्मरण !.गज़ब कानून!

( अपनी श्रीन्ख्लासे एक ब्रेक लेके इस ज़रूरी संस्मरण को लिखना चाहती हूँ...वजह है है अपने१५० साल पुराने, इंडियन एविडेंस एक्ट,(IEA) कलम २५ और २७ के तहेत बने कानून जिन्हें बदल ने की निहायत आवश्यकता है....इन कानूनों के रहते हमआतंकवाद या अन्य तस्करीसे निजाद पाही नही सकते...
इन कानूनों मेसे एक कानून के परिणामों का , किसीने आँखों देखा सत्य प्रस्तुत कर रही हूँ.....जिसपे आधारित एक सत्य घटनाका कहानीके रूपमे परिवर्तन करुँगी। डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल के अनुरोधपे " शोध दिशा" इस मासिक के लिए...)
CHRT( कॉमनवेल्थ ह्युमन राइट्स इनिशिएतिव .....Commonwealth Human Rights Initiative), ये संघटना 3rd वर्ल्ड के तहेत आनेवाले देशों मे कार्यरत है।
इसके अनेक उद्दिष्ट हैं । इनमेसे,निम्लिखित अत्यन्त महत्त्व पूर्ण है :
अपने कार्यक्षेत्र मे रिफोर्म्स को लेके पर्याप्त जनजागृती की मुहीम, ताकि ऐसे देशोंमे Human Rights की रक्षा की जा सके।
ये संघटना इस उद्दिष्ट प्राप्ती के लिए अनेक चर्चा सत्र ( सेमिनार) तथा debates आयोजित करती रहती है।
ऐसेही एक चर्चा सत्र का आयोजन, २००२ की अगस्त्मे, नयी देहली मे किया गया था। इस सत्र के अध्यक्षीय स्थानपे उच्चतम न्यायालयके तत्कालीन न्यायाधीश थे। तत्कालीन उप राष्ट्रपती, माननीय श्री भैरव सिंह शेखावत ( जो एक पुलिस constable की हैसियतसे ,राजस्थान मे कार्यरत रह चुके हैं), मुख्य वक्ता की तौरपे मौजूद थे।
उक्त चर्चासत्र मे देशके हर भागसे अत्यन्त उच्च पदों पे कार्यरत या अत्यन्त संवेदनशील क्षेत्रों से ताल्लुक रखनेवाली हस्तियाँ मोजूद थीं : आला अखबारों के नुमाइंदे, न्यायाधीश ( अवकाश प्राप्त या कार्यरत) , आला अधिकारी,( पुलिस, आईएस के अफसर, अदि), वकील और अन्य कईं। अपने अपने क्षेत्रों के रथी महारथी। हर सरकारी मेहेकमेकों के अधिकारियों के अलावा अनेक गैर सरकारी संस्थायों के प्रतिनिधी भी वहाँ हाज़िर थे। (ngos)

जनाब शेखावत ने विषयके मर्मको जिस तरहसे बयान किया, वो दिलो दिमाग़ को झक झोर देने की क़ाबिलियत रखता है।
उन्होंने, उच्चतम न्यायलय के न्यायमूर्ती( जो ज़ाहिर है व्यास्पीठ्पे स्थानापन्न थे), की ओर मुखातिब हो, किंचित विनोदी भावसे क्षमा माँगी और कहा,"मेरे बयान को न्यायालय की तौहीन मानके ,उसके तहेत समन्स ना भेज दिए जाएँ!"
बेशक, सपूर्ण खचाखच भरे सभागृह मे एक हास्य की लहर फ़ैल गयी !
श्री शेखावत ने , कानूनी व्यवस्थाकी असमंजसता और दुविधाका वर्णन करते हुए कहा," राजस्थान मे जहाँ, मै ख़ुद कार्यरत था , पुलिस स्टेशन्स की बेहद लम्बी सीमायें होती हैं। कई बार १०० मीलसे अधिक लम्बी। इन सीमायों की गश्त के लिए पुलिस का एक अकेला कर्मचारी सुबह ऊँट पे सवार हो निकलता है। उसके साथ थोडा पानी, कुछ खाद्य सामग्री , कुछ लेखनका साहित्य( जैसे कागज़ पेन्सिल ) तथा लाठी आदि होता है।
"मै जिन दिनों की बात कर रहा हूँ ( और आजभी), भारत पाक सीमापे हर तरह की तस्करी, अफीम गांजा,( या बारूद तथा हथियार भी हुआ करते थे ये भी सत्य है.....जिसका उनके रहते घटी घटनामे उल्लेख नही था) ये सब शामिल था, और है।
एक बात ध्यान मे रखी जाय कि नशीले पदार्थों की कारवाई करनेके लिए ,मौजूदा कानून के तहेत कुछ ख़ास नियम/बंधन होते हैं। पुलिस कांस्टेबल, हेड कांस्टेबल, या सब -इंस्पेक्टर, इनकी तहकीकात नही कर सकता। इन पदार्थों की तस्करी करनेवाले पे, पंचनामा करनेकी विधी भी अन्य गुनाहों से अलग तथा काफी जटिल होती है।"
उन्होंने आगे कहा," जब एक अकेला पुलिस कर्मी , ऊँट पे सवार, मीलों फैले रेगिस्तानमे गश्त करता है, तो उसके हाथ कभी कभार तस्कर लगही जाता है।
"कानूनन, जब कोई मुद्देमाल पकडा जाता है, तब मौक़ाये वारदात पेही( और ये बात ह्त्या के केस के लिएभी लागू है ), एक पंचनामा बनाना अनिवार्य होता है। ऐसे पंचनामे के लिए, उस गाँव के या मुहल्ले के , कमसे कम दो 'इज्ज़तदार' व्यक्तियों का उपस्थित रहना ज़रूरी है।"

श्री शेखावत ने प्रश्न उठाया ," कोईभी मुझे बताये , जहाँ मीलों किसी इंसान या पानीका नामो निशाँ तक न हो , वहाँ, पञ्च कहाँ से उपलब्ध कराये जाएँ ? ? तो लाज़िम है कि , पुलिसवाला तस्करको पकड़ अपनेही ही ऊँट पे बिठा ले। अन्य कोई चारा तो होता ही नही।
"उस तस्करको पकड़ रख, वो पुलिसकर्मी सबसे निकटतम बस्ती, जो २०/ २५ किलोमीटर भी हो सकती है, ले जाता है। वहाँ लोगोंसे गिडगिडा के दो " इज्ज़तदार व्यक्तियों" से इल्तिजा करता है। उन्हें पञ्च बनाता है।
" अब कानूनन, पंचों को आँखों देखी हकीकत बयान करनी होती है। लेकिन इसमे, जैसाभी वो पुलिसकर्मी अपनी समझके अनुसार बताता है, वही हकीकत दर्ज होती है। "पञ्च" एक ऐसी दास्तान पे हस्ताक्षर करते हैं, जिसके वो चश्मदीद गवाह नही। लेकिन कानून तो कानून है ! बिना पंचानेमेके केस न्यायालय के आधीन होही नही सकता !!
" खैर! पंचनामा बन जाता है। और तस्कर या जोभी आरोपी हो, वो पुलिस हिरासतसे जल्द छूट भी जता है। वजह ? उसके बेहद जानकार वकील महोदय उस पुलिस केस को कानून के तहेत गैरक़ानूनी साबित करते हैं!!!तांत्रिक दोष...A technical flaw !
" तत्पश्च्यात, वो तस्कर या आरोपी, फिर से अपना धंदा शुरू कर देता है। पुलिस पे ये बंधन होता है की ३ माह के भीतर वो अपनी सारी तहकीकात पूरी कर, न्यायालयको सुपुर्द कर दे!! अधिकतर ऐसाही होता है, येभी सच है ! फिर चाहे वो केस, न्यायलय की सुविधानुसार १० साल बाद सुनवाईके लिए पेश हो या निपटाया जाय....!
"अब सरकारी वकील और आरोपी का वकील, इनमे एक लम्बी, अंतहीन कानूनी जिरह शुरू हो जाती है...."
फिर एकबार व्यंग कसते हुए श्री शेखावत जी ने कहा," आदरणीय जज साहब ! एक साधारण व्यक्तीकी कितनी लम्बी याददाश्त हो सकती है ? २ दिन २ माह या २ सालकी ??कितने अरसे पूर्व की बात याद रखना मुमकिन है ??
ये बेहद मुश्किल है कि कोईभी व्यक्ती, चश्मदीद गवाह होनेके बावजूद, किसीभी घटनाको तंतोतंत याद रखे !जब दो माह याद रखना मुश्किल है तब,१० सालकी क्या बात करें ??" (और कई बार तो गवाह मरभी जाते हैं!)
" वैसेभी इन २ पंचों ने (!!) असलमे कुछ देखाही नही था! किसीके " कथित" पे अपने हस्ताक्षर किए थे ! उस " कथन" का झूठ साबित करना, किसीभी वकील के बाएँ हाथका खेल है ! और वैसेभी, कानून ने तहेत किसीभी पुलिस कर्मी के( चाहे वो कित्नाही नेक और आला अफसर क्यों न हो ,) मौजूदगी मे दिया गया बयान ,न्यायलय मे सुबूतके तौरपे ग्राह्य नही होता ! वो इक्बालिये जुर्म कहलाही नही सकता।( चाहे वो ह्त्या का केस हो या अन्य कुछ) ।(IEA ) कलम २५ तथा २७ , के तहेत ये व्यवस्था अंग्रेजों ने १५० साल पूर्व कर रखी थी, अपने खुदके बचाव के लिए,जो आजतक कायम है ! कोई बदलाव नही ! ज़ाहिरन, किसीभी पुलिस करमी पे, या उसकी बातपे विश्वास किया ही नही जा सकता ऐसा कानून कहता है!! फिर ऐसे केसका अंजाम क्या होगा ये तो ज़ाहिर है !"

(भाषण अभी अपूर्ण है....कुछ अवधीके बाद पूरा कर दूँगी। Trasnliteration काम नही कर रहा है। )क्षमा प्रार्थी हूँ !

4 comments:

Anonymous said...

आपने हमारे कानूनों में जो लोप हैं उनका खुलासा कर मनन चिंतन के लिए एक विषय दिया है. आभार. मुआफी चाहता हूँ. अब तक जो आप को पढ़ा है और जो शैली देखी है उस से यह लेख बिल्कुल ही मेल नहीं खा रहा है. यह शमा जी का लिखा नहीं होना चाहिए.

shama said...
This comment has been removed by the author.
shama said...

Aur wishwaas rakhiye, maine aajtak apne blog pe any kisee aurse kabhee nahee likhwaya na ccopy kee...sirf jaankaarikaa jahan sambandh tha, us baareme spasht likha...qaanoon to maine kalam qote karke likhe hain...jo behad zarooree hai...useese har kathya ki authenticity, vishwasneeyata badhtee hai...aap net jaake ye kalam kaunse hain...Shree Shekhawat kaa kya bhashan tha...sab khoj sakte hain...
Itne wishwaas se jo aapnee tippanee dee, hai usee adhikaarse aapse anurodh hai, ki poora blog padhen aur phir comment karen..

shama said...

Ek aur baat spasht kar dun...jahaan bhee avataran chinh honge, zaahir hai, wahan kiseeko quote-unquote kiyaa gaya hai...wo shailee meree kaise ho sakti hai ?
Is baatpe aap gaur karte to meree shailee yaa lekhanke baareme apnee istarahki tippanee nahee dete.
Aur PNS ji, ye tippanee bhee aapki likhi lag nahee rah rahee hai, kaun likhwa raha hai yebhi jaanti hun .