Thursday, June 18, 2009

शकीली बुनियादें

कभी शक बेबुनियाद निकले
कभी देखी शकीली बुनियादे
ऐसी ज़मीं कहॉ है,
जो खिसकी नही पैरोतले !
कभी खिसकी दसवें कदम पे
तो कभी कदम उठाने से पहले .....

4 comments:

ओम आर्य said...

जिन्दगी कुछ ऐसा ही होता है ......सुन्दर अभिव्यक्ति

नीरज गोस्वामी said...

बहुत दिनों बाद आपको पढने का मौका मिला है...बहुत अच्छी रचना...
नीरज

shama said...

नीरज कुमार ने कहा…

कभी शक बेबुनियाद निकले
कभी देखी शकीली बुनियादे

वाह! बेहतरीन...
June 19, 2009 12:22 AM

निर्झर'नीर said...

bahut gahre bhaav hai ..