कभी शक बेबुनियाद निकले
कभी देखी शकीली बुनियादे
ऐसी ज़मीं कहॉ है,
जो खिसकी नही पैरोतले !
कभी खिसकी दसवें कदम पे
तो कभी कदम उठाने से पहले .....
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My writings about life, loss & love in India. I write in English, Hindi & Marathi. All of the prose & poetry on this blog is my own & is copywritten. Thank you for visiting!
4 comments:
जिन्दगी कुछ ऐसा ही होता है ......सुन्दर अभिव्यक्ति
बहुत दिनों बाद आपको पढने का मौका मिला है...बहुत अच्छी रचना...
नीरज
नीरज कुमार ने कहा…
कभी शक बेबुनियाद निकले
कभी देखी शकीली बुनियादे
वाह! बेहतरीन...
June 19, 2009 12:22 AM
bahut gahre bhaav hai ..
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