Friday, January 25, 2008

दयाकी दृष्टी.सदाही रखना ! १५

"आंटी, मुझसे बोहोत बड़ी भूल हो गयी। माफीके काबिल नही हूँ,फिरभी माफी माँगता हूँ। मैं भारत लॉट आया हूँ। अब माँ बापके साथ ही रहूँगा उन्हें सुखी रखूँगा,कमसे कम कोशिश करूँगा,"संजू रो-रोके बोल रहा था।
मिसेस सेठना ने उसे बीच मे घटी सारे घटनाओका ब्योरा सुनाया,फिर पूछा,"तुम्हारी भूल तुम्हारे ध्यान मे कैसे आयी?"
"आंटी, वहाँ पर एक वृद्धाश्रम मे मुझे विज़िट पे बुलाया था। वहाँ ऐसे कई जोड़े रहते है। दोनो साथ,साथ होते है तबतक खुशभी होते है। उस दिन एक भारतीय स्त्री मुझे मिली। माँ के उम्र की होगी। पगला-सी गयी थी। मेरा हाथ छोड़ने को तैयार नही थी।
"मेरे बच्चो को मरे पास ले लाओ। ये देखो, ये पता है। यहाँ के लोग उन्हें बुलाते ही नही। कोई मेरी बात ही नही सुनता है,बेचारी रो-रोके बोल रही थी।
मैंने आश्रम मे तलाश की तो पता चला कि उसके बच्चे आनाही नही चाहते। पैसे भेज देते है। वीक एंड पे घूमने चले जाते है। मेरी आखोंके सामने मेरी माँ आ गयी। मुझ पर मानो बिजली-सी बरस पडी। मैंने उसी पल भारत लॉट नेका निर्णय ले लिया। ब्याह तो कियाही नही था, इसलिए किसीके सलाह मश्वरेकी ज़रूरत नही थी। आंटी मुझे अभी,इसीवक्त माके पास ले चलिए। "
दोनो निकल ही रहे कि आश्रमसे फ़ोन आया,आशाकी तबियत बोहोत खराब है। वो लोग पोहोचे तबतक मुख्याध्यापिका भी पोहोच गयी थी। डाक्टर भी वही थे। संजूको किसीने पहचाना नही। मिसेस सेठना ने परिचय करवाया। लीलाबाई आँखे पोंछते हुए बोली,"आज सुबह्से कुछ नही खाया पिया। बस,राजू-संजू आएँगे तभी लूँगी, यही कहती रहती है।"
मिसेस सेठना अपने साथ मोसंबी लाईं थीं ..... लीलाबाई को झट से रस निकालने को कहा। ड्रिप लगी हुई थी। मिसेस सेठना ने डाक्टर से धीमी आवाज़ मे कुछ कहा ......उन्होने गर्दन हिलाई...... संजूकी आँखों से आँसू बह रहे थे। उसने माका एक हाथ पकडा, दूसरा डाक्टर ने।
"माँ! देख हम आ गए है। अब ये रस लेले, वो बोला। आशाने संजूके हाथों रस ले लिया। उसके होंठ कुछ बुदबुदाने लगे। सबने एक दूसरेकी और प्रश्नार्थक दृष्टी से देखा। लीलाबाई बोली ,"वो कह रही है,'दयाकी दृष्टी सदाही रखना,'जो हमेशा गाती रहती है।" आसपास खडे लोगोकी आँखे भर आयीं........ संजू तो लौट ही आया था, डाक्टर के रूपमे राजूभी मिल गया।

समाप्त ।


धन्यवाद!!

2 comments:

Anonymous said...

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