कई बार अचंभित हो जाती हूँ, जब पीछे मुडके देखती हूँ...अपने आपसे सवाल करती हूँ, क्या ये मेरीही कहानी है??वाकई कोई नन्हा-सा दिया, कोई छोटी-शमा एक तूफ़ान का सामना करते हुए जिंदा है??या बुझी-बुझी-सी है, इसलिए लगता है की इसमे जान है??आगे "एक बार फिर दुविधामे" काफी कुछ लिखना बाकी है...अभी तो शायद मैंने दस प्रतिशतभी नही लिखा...अबतक तो इन बतोंके दूरगामी दुष्परीनाम नही लिखे...जब की अपनी जिंदगीके बारेमे इस ब्लॉग पे कितना कुछ लिख चुकी हूँ...फिरभी, कितना कुछ हिमनग की तरह अपने अंतरमे छुपाके रास्ता तय कर रही थी/हूँ!एक अथांग महासागर मे ,जो मेरा मन है, क्या कुछ दबा पड़ा है...शायद जानके दबाये रखा है...अपनी अस्मिताके लिए...क्या वो सब मै बाहर निकाल स्वीकार कर पाउंगी?? नही...उस हदको पार करना मेरे लिए कठिन होगा...जितनी हिम्मत दिखा चुकी हूँ, मुझे उसीमे समाधान मान लेना होगा। उस हद्के अन्दर रहकर ही आगेका किस्सा बयां करना होगा।
लिखते, लिखते ये एक अंतराल ले लिया था। जब, जैसा मौक़ा मिलेगा आगे लिखती रहूँगी। माँ को कैंसर हुआ है। अभी, अभी पता चला है। वो ज़िम्मेदारी मुझपे है। दो दिनोबाद उनकी शल्य चिकित्छा है। मेरे पाठकों ये बताना ज़रूरी समझा वरना अगर मै अचानक ब्लॉग पेसे गायब हो गयी तो ग़लतफ़हमी हो सकती है। और मेरे दोस्तों की शुभकामनाएं भी चाहती हूँ!
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3 comments:
प्रभू आप की माता जी को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करे।
kafi veechar magan lekh likha hai aapne. sochsheelta dikhai padti hai. waise aapki mata ji ke liye hum bhi bhagwaan se dua karenge. bhagwan unhe jaldi theek kare
Rakesh Kaushik
"क्या ये मेरीही कहानी है??"
शमाजी. ये दुनिया के हर आदमी कि कहानी है।हम आम इंसानो के हर घर कि कहानी है।बल्कि मैं तो कहुंगी यही सच्चाइ है हम सब के जिवन की।
एक करूण पोस्ट!!!!
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