अपने असंपादित कडीकी माफ़ी चाहती हूँ....spellings चेक नही कर पायी....और अगली कडीमे वादा है कि...उन चंद घटनायों का ब्योरा ज़रूर दूँगी...जानती हूँ, इस मालिका पढ़नेवाले हर अज़ीज़ पाठक को चंद घटनायों का इंतज़ार है...
चाहकर भी मै अधिक तेज़ीसे नही लिख पा रही हूँ..इस वक्त भी माँ परेशान हैं..कि उनके कमरेमे बैठ लिख रही हूँ...कल से कुछ कामके खातिर शेहेरसे बाहर जा रही हूँ...फिर पता नही कब लिख पाउंगी...
वैसेभी, मेरे पास पहलेसे कुछ rough लिखा हुआ नही होता...और जब अत्यधिक थक जाती हूँ तो औरभी मे गलतियाँ कर देती हूँ...जैसेकि "सहेजे" के बदले " प्रकाशित" पे क्लिक कर देती हूँ.....इस गलतीको सरिदय पाठक ज़रूर माफ़ करेंगे ऐसी आशा है....
एक अच्छा इत्तेफ़ाक है कि ऐसेमे कोई शुरुसे जुडा पाठक पोस्ट पढने नही आता...
एक बार फिरसे निवेदन है कि, इस श्रिन्खलाका मक़सद मेरे जोभी हालत हों, उनके लिए किसी एक या अनेक व्यक्तियों को दोषी ठहराना नही है...लगातार इसका स्पष्टीकरण देती आयी हूँ....अपनी बेटीकी सबसे अधिक गुनेहगार हूँ.....बेटेकी उतनी नही....चाहती हूँ, जितनी तटस्थता के साथ बयान पेश कर सकती हूँ, करुँ....अदना-सी औरत हूँ...जिसने ज़िन्दगीमे गलतियाँ की हैं...अक्सर उन्हें स्वीकार भी कर लिया है...स्वीकार नेके बादभी गर कोई माफ़ ना करे तो वो मेरी किस्मत है...हरेक का अपना, अपना नज़रिया है....
अपने परिवारको, ख़ास कर अपनी बेटीको प्राथमिकता दी है तब कई बार द्वंद हुआ है....अपनों सही...लेकिन अक्सर देर से सही, कमसे कम मेरी माँ ने साथ दिया है....और मेरी बेटीका दिया है...इसलिए मै उस क्रिया/प्रातक्रिया को मेरा साथ देनाही समझती हूँ...जानती हूँ, कि ज़िन्दगीमे हर वक्त हर किसीको कोईभी खुश नही रख सकता...और नही मुझे ये ग़लतफ़हमी कहिये या खुशफ़हमी रही आज के, मैंने किसीको ख़ुशी दी है...उस समय उस व्यक्ती ने खुश होना स्वीकार कर मुझे संतोष दिया है....
शायद अपनी बिटियाको लेके आज मै अधिक भावुक हूँ...क्यों के उसके प्रती हुए अन्याय को हर गुज़रते दिनके साथ गहराई से महसूस कर रही हूँ....अपना येभी दोष सहर्ष स्वीकार है.....क्योंकि वो निर्दोष है...रही है और और फिरभी सबसे अधिक उसे दर्द बरदाश्त करना पडा है...जैसेकि मेरी माँ के हालातको बड़े बेटी होनेके नाते मैंने अधिक महसूस किया है....
अपनी बिटियासे ना चाहते हुएभी कई बार हताशामे आके झगड़ पड़ती हूँ....और पश्च्याताप भी महसूस करती हूँ...काश वो ख़ुद ये मालिका पढ़ समझ पाए कि मै उसकी भावनाओं के लेके कितनी सजग हूँ.....अपने जीवन के हर अच्छे बुरे सत्यसे मै उसे ज़रूर परिचित करा दूँगी....
"washing my dirty linen in public"इस कहावत के तहेत एक मर्यादाको बनाये रखना ज़रूरी है...वरना किसीपे अनचाहा आक्षेप या अपनी सच्चाई बनाये रखनेके अभिमान मे किसी अन्यको दर्द दे दूँ...येभी मंज़ूर नही....ना पतीको ना किसी अन्य रिश्तेदार को....और येभी ज़रूर है कि, समय आनेपे अपने सारे दोष मैंने पहले अपनी माँ, फिर अपनी बेटी के सामने स्वीकार किए हैं...पतीकोभी अवगत कराया है...उसे उन्हों ने किस ढंगसे लिया वो उनका अपना नज़रिया है....
ज़िंदगी मे कई बार ऐसा हुआ है कि किसीने आधी तस्वीर उनके आगे रख दी, और उनके लिए उसवक्त की वो सच्चाई बन गयी...और मैंने कभी नही सोचा कि मै एक अत्यन्त साधारण औरत होनेके अलावा और कुछभी हूँ....पर इस मकामपे आके मै इतना कुछ खो चुकी हूँ...कि और इक तिनका काफ़ी है, इस ऊँट के लिए...पर अपनी बेटीके लिए मै शेरनी हूँ...किसी औरके लिए रहूँ ना रहूँ...और अक्सर येभी हुआ है कि उसने किसी व्यक्तीकी जल्द परख कर ली है और मुझे देर लगी है..ये गुण उसमे है...मुझमे नही...पर जिस घड़ी मुझे इस बातका एहसास हुआ, मैंने उसीवक्त वो स्वीकार करनेका प्रण कर लिया है....आजही शाम कुछ दसवीं बार एक ग़लतीकी स्वीकृती उससे कर चुकी हूँ...और उसे धन्यवाद् देना चाहूँगी के उसने चाहे जिसभी ढंगसे हो, मुझे समय रहते एहसास करा दिया...
और येभी सत्य है कि मैंने उतनीही तेज़ीसे उसपे अमल कर दिया.....ईश्वरसे यही दुआ है कि मुझे समय रहते सजग कर दे.....सुबह्का भूला शामको तो घर आही जाए...उसे भूला ना कहो येभी मेरा इसरार नही .....सिर्फ़ घरमे जगह देदो...दिलमे बना लूँ ये शायद मेरी क़िस्मत नही.....मुझसे कभी भूल नही हुई, ये दावा तो मेरा कभी नही....मालिका का जो मक़सद था, उसके तहेत मै जितना खुदको और अपने परिवारको expose कर सकती थी कर दिया....
अपने अकेलेपन को खुलेआम ज़ाहिर करना या किसीकी सहानुभूती प्राप्त करना ये मक़सद तो कभी थाही नही....कई बार ऐसा हुआ कि मेरे लेखनको चंद लोगों ने अन्यथा लिया... जबसे लिखने लगी तबसे....और जब मुझे एक हद्के परे करीबी अच्छी नही लगी, ये महसूस होनेके बाद मुझपे हर मुमकिन इल्ज़ाम लगा के बदला लेनेकी ठान ली...पिछले दस सालों से मैंने ये देखा...जबकि मैंने अपने कामकी खातिरही एक सम्बन्ध बनाना चाहा.......मुझे नही पता कि कौन किस वक्त किस हदतक सफल रहा...और सच तो ये है, मेरे ब्याह्के दूसरे दिनसेही मेरे और मेरे पतीके बीछ अलगाव लानेकी कोशिश रही....वजूहात अलग रहे हरबार.....अक्सर मुझे नज़र आते लेकिन ज़रूरी नही कि जो मुझे नज़र आता गया वो उन्हें भी नज़र आही जाय....पर हाँ, बोहोत कम लोगों के एहम ने ये स्वीकार किया कि मै पलटके उन्हें उनकी हद दिखा सकती हूँ....एक नारीसे अक्सर ये उम्मीद नही होती...जब कि युगों से नारी ने ये हिम्मत दिखायी है...! ये बात कई बार अन्य नारीकोभी स्वीकार नही होती, येभी एक सत्य है...! और इसका केवल एकही कारन है...अपना अंहकार........ये अंहकार जीवन मे मुझपेभी कई बार हावी रहा...कई बार समय रहते मुझे वो नज़र आ गया...
इस मनोगतका एक ना दिन एक दिन, मालिकाके समापनके पहले समय आनाही था...और ज़रूरीभी था...बल्कि सम्प्पोर्ण मालिका एक मनोगाथी रही है...सिर्फ़ वो भूतकालका मनोगत रही...ये वर्तमान का मनोगत है....
इतने लंबे चौडे मनोगत के लिए अपने पाठकों की क्षमा प्रार्थी हूँ.....हर बार मुझे माफ़ किया है....फिर एकबार वही बिनती लिए खडी हूँ...
आज मै समझ गयी हूँ कि मेरी जवाबदेही, सिर्फ़ मेरे परिवारके प्रति है, अपने समाजके प्रती है..अपने निकट वार्तियों के के प्रति है.....उसका अधिकार सिर्फ़ उन्हें है, जो मेरी ज़िन्दगीमे शुरुसे आजतक शामिल हैं....
हर लेखनमे स्वीकार कर चुकी हूँ, कि एक हद्के बाहर जाके मै अपने परिवारको expose नही करूँगी...इस मालिकाके तहेत मैंने काफ़ी कुछ कह दिया है....इसके परे मै नही जाना चाहती...
आजतक जोभी लिखा है, उसमेसे एक शब्दभी ग़लत नही है.....गर होता तो सबसे पहले अपनी माँ से आँख नही मिला सकती....
हाँ..अपने पतीके लिए ताउम्र रह चुकी हूँ...उन्हें नज़र आए ना आए.....मेरे अतराफ़ मे रहनेवालों ने देर सबेर ये जाना है....आजतक मैंने पतीके लिए जोभी मेरे बसमे था करना वो कर्तव्य निबाह लिया है....परिपूर्ण कोई इंसान नही...उसमे कमियाँ ज़रूर रही होंगी....और ये धरती इंसानों की है....
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6 comments:
बिल्कुल सही कहा-परिपूर्ण कोई इंसान नही...उसमे कमियाँ ज़रूर रही होंगी....और ये धरती इंसानों की है.
गल्तियाँ स्वीकार कर लेने से भी मन हल्का तो हो ही जाता है पर निश्चित ही ए़क्सपोजर की सीमा भी निर्धारित करनी होती है और यदि सामने वाला किसी गलतफहमी का शिकार हो जाये तो उसे अहसास भी कराना हमारा ही कर्तव्य है.
बढ़िया लिखा.
Mere satya asatyake baareme gar aadarneey pathak charchaa naa karen to behad shukrguzaar rahungee...mere lekhanme kewal saty hai use mere sariday paathak, sirf blogke nahee anyatr, mere pariwaarwaale sab jaante hain
Jaiseki Sameer ji ne tippanee, kewal lekhan ko leke kee hai, koyi wyatigat nahee....isme har kiseekee garimaa samavisth hai.
Gar ye kahen ki paatahk satyako samajh nahee paa rahe..aur inhen asaty pesh kiyaa jaa rahaa hai to ye unkee qabiliyat kee tauheen hain....unkaa apmaan mere blogpe naa karen...samansas log, khamosh hai..isliye na chaahkebhee mujhe likhnaa pada...
परिपूर्ण कोई इंसान नही...उसमे कमियाँ ज़रूर रही होंगी....और ये धरती इंसानों की है....
सच कहा शमा जी...हम सब ज़िन्दगी के किसी ना किसी मोड़ पर गलतियाँ करते हैं...लेकिन उन्हें सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने का साहस बहुत कम दिखा पाते हैं...आप अपने दिल में सच्ची हैं तभी ये संस्मरण लिख पायीं...
नीरज
कभी मन्नू भंडारी की आत्म कथा एक सच ये भी पढ़कर देखे......
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