Wednesday, May 30, 2007

हकीकत नही तो ना सही....

किसीके लिए मैं हकीकत नही
तो ना सही !
हू मेरे माज़िकी पर्छायी ,
चलो वैसाही सही !
जब ज़मानेने मुझे
क़ैद करना चाहा
मैं बन गयी एक साया,
पेहचान मुकम्मल मेरी
कोई नही तो ना सही !
रंग मेरे कयी
रुप बदले कयी
किसीकी हू सहेली
किसीके लिए पहेली
हू गरजती बदरी
या किरण धूपकी
मुझे छू ना पाए कोई,
मुट्ठीमे बंद करले
मैं वो खुशबू नही.
जिस राह्पे हू निकली
वो निरामय हो मेरी
इतनीही तमन्ना है.
गर हो हासिल मुझे
बस उतनीही जिन्दगी
जलाऊं अपने हाथोंसे
झिलमिलाती शमा
झिलमिलाये जिससे
एक आंगन,एकही जिन्दगी.
रुके एक किरण उम्मीद्की
कुछ देरके लियेही सही
शाम तो है होनीही
पर साथ लाए अपने
एक सुबह खिली हूई
र्हिदय मेरा ममतामयी
मेरे दमसे रौशन वफा
साथ थोड़ी बेवाफायिभी
जीवनमे पूरे, कयी
सारे चहरे मेरे,
ओढ़े कयी नकाब भी
अस्मत्के लिए मेरी
था येभी ज़रूरी
पहचाना मुझे?
मेरा एक नाम तो नही...

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