बोहोत सच बोल गयी,
नासमझी की,और नही,
अब झूठ बोलती हूँ
यही समझ आये,
यही सोंचती हूँ!
कठ्गरेमे खडा किया
सवालों के घेरेमे
ईमान कर दिया,
तुम्हे क्या मिल गया?
दोस्तों,इल्तिजा है,
कुछ्तो रेहेम करो,
मेरी तफतीश करना
खुदा के लिए बंद करो!
भरे चौराहेपे मुझे
शर्मसार तो ना करो!
आज सरे आम,गुनाह
सारे कुबूल करती हूँ
की या नही की,
खतावार हूँ,हर खतापे
अपनी मुहर लगाती हूँ,
इकबालिया बयान देती हूँ!
सुनो  ए   गवाहो,
गौरसे सुनो,
जब बुलावा आये
भरी अदालातमे दुहाई देना
बिना पलक झपके
मेरे खिलाफ गवाही देना
बा इज़्ज़त बरी होने वालों
जाओ ज़िन्दगीका जश्न मनाओ
तुम्हारे दामन मे वो सारी
ख़ुशी हो
जिसकी तुमने तमन्ना की
तुम्हारी हर वो तमन्ना हो पूरी..
नम्र निवेदन:किसीभी लेखन का अनुकरण ना करे।
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1 comment:
शमा जी,आप कि रचना बहुत भावपूर्ण है। बहुत पसंद आई।
मेरे खिलाफ गवाही देना
बा इज़्ज़त बरी होने वालों
जाओ ज़िन्दगीका जश्न मनाओ
तुम्हारे दामन मे वो सारी
ख़ुशी हो
जिसकी तुमने तमन्ना की
तुम्हारी हर वो तमन्ना हो पूरी
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