"सागर इधर आओ!"कोनेमे खडे सागरको उसकी माने बुलाया। सागरने सब सुनही लिया था। वो आगे आया लेकिन किसीसे नज़रें मिल नही पाया। नीचे मूह लटकाए बोला,"कौन देखभाल करेगा ऐसे बच्चेकी??मैं सभीके भलेकी खातिर कह रहा था।"
"भलेकी खातिर? अरे हत्या करनेवाला था तू उस निरपराध जीवकी?? बाप होते हुए? तुझे शर्म नही आयी?"सागरकी माँ घुस्सेसे बोली।
सागर सागर संगीतासे कुछ्भी बात किये बिना बाहर निकल गया। संगीताने मनही मन निश्चय किया,वो अपने आगेका भवितव्य स्वीकार करेगी।,चाहे उसे जोभी कीमत चुकानी पडे। बच्चे को कमसे कम एक महीना अस्पताल मे रखना ज़रूरी था। दुसरे दिन जब डाक्टर ने उसे चलनेकी इजाज़त दीं तो incubator मे रखे अपने उस असहाय जीव को उसने देखा । वो ज़्यादा दिन जिंदा नही रह सकता ये कोयीभी बता सकता था,लेकिन जबतक जियेगा,वो अपनी जान निछावर करेगी,ये उसने तय कर लिया।
महीनेभर के बाद वो और उसका बच्चा घर आये। संगीताने अपने बैंक वालोंको पहलेही स्थिती बता दीं थी। बैंक ने उसे हर प्रकार से सहायता दीं।
आजकल सागर और उसके बीच बातचीत ना के बराबर ही होती थी। लेकिन सास उसकी बेहद मदद करती लगभग छ: महीनोके बाद वो बालक संगीताकी नज़दीकी का एहसास करने लगा। संगीता उसके पलनेके पास आती तो उसके होटों पे हल्की-सी मुस्कान आती। ये देख कर संगीता का दिल भर आता। उसे लगता,कुछ्ही दिनोके लिए क्यों ना हो, उसकी मेहनत सार्थक हुई है।
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1 comment:
अच्छी कहानी है।जल्द पूरी कहानी कि प्रतीक्षा मे…॥……………………
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