ये सुनकर उसका अपनी अशिक्षित माँ के प्रती आदर एकदम से बढ़ गया। कितने धीरज से ज़िंदगी का सामना किया था उस अनपढ़ औरत ने!
आशाके दिन पूरे हो गए। सरकारी अस्पताल मी उसका प्रसव हुआ। सबकुछ ठीक ठाक हो गया। नामकरण के समय पतीने कहा,"नाम मे कहीं तो 'राजा' होना चाहिए। यथानाम तथा गुण। मन से धन से वो राजा बनेगा। अंत मे "राजीव"नाम रखा और उसका राजू बन गया। सबकुछ कैसा मनमुताबिक चल रहा था। भगवान्! मेरे नसीब को कहीँ नज़र न लग जाये, कभी,कभी आशाके मनमे विचार आता।
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