Tuesday, October 16, 2007

किसी राह्पर 7

इतनेमे फिर दरवाज़की घंटी बजी। उसने दरवाज़ा खोला। एक जोडा अन्दर आया। संगीताने उनका परिचय कराया,"आप है मिस्टर और मिसेस राय ,और ये है मिस्टर साठे।"
फिर राय दम्पतीकी ओर मुखातिब होके बोली,"हमे चलना चाहिऐ, हैना?मि.साथे, हम लोग जब्भी मौक़ा मिलता है,पास के व्रुधास्रम मे जाते है,वहाँ पर भिन्न,भिन्न संस्कृतिक कार्यकम करते हैं, गाते बजाते हैं,उन्हें घुमानेभी ले जाते हैं। हमारा बैंक ऐसे कई कार्यक्रम स्पोंसर करता है। कुल मिलके बडे मज़से वक़्त कटता है हमारा!" उस पूरी शाम मे संगीता पहली बार इतना उल्लसित होकर बतिया रही थी,लेकिन उसका "मि.साठे"संबोधन सागर को झकझोर गया।
पर्स लेकर वो दरवाज़के पास खडी हो गयी,सागर के लिए बाहर निकल जानेका ये स्पष्ट संकेत था। सागर बाहर निकला । संगीता अपने साथियोंके साथ कारमे बैठी और निकल गयी। शायद आगे ज़िन्दगीमे उसे उसके लायक कोई मीत मिल जाये क्या पता.....ऐसा कि जिसे संगीता जैसे रत्न की परख हो! सागर ने एक आह-सी भरी....उसके हाथोंसे वो हीरा तो निकल ही गया था....उसीकी मूर्खता के कारण।
जिस मोड़ पे सागर ने संगीता को छोड़ा था वहाँसे वो कहीं आगे, दूर और बोहोत ऊंचाई पे पोहोंच गयी थी !
समाप्त।

2 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया है.

Divine India said...

ब्लाग पर कभी-2 ही आजकल आना होता है इसकारण लगता है बहुत अच्छी चीज छूट गई…
बहुत अच्छा लगा पढ़कर…।