Tuesday, June 10, 2008

मेरे जीवनसाथी....1

विनयजी से मेरा परिचय हुआ तब मैं एम्. ए का प्रथम वर्ष पूरा कर चुकी थी। छात्रावास मे रहके पढ़ती थी,सो परीक्षाके के बाद अपने गांवके घर लौटी। आके पता चला की हमारे तालुके की जगह एक IPS अफसरकी पोस्टिंग हुई है। मेरे दादा-दादी तथा मेरे माँ-पिताजिका उनसे पहलेही परिचय हो चुका था। मेरे पिताजी किसी कामसे इस नए आए अफसरसे मिलने गए थे। वे दिल्ली विद्यापीठ्के,सेंट स्टीफंस कोलेजसे स्नातक हो चुके थे। विनयजी थे हिंदू कॉलेज से थे। उन्होंने राज्यशात्र एम् ए किया था पिताजी थे इंग्लिश साहित्य के एम्.ए. पिताजी के अस्खलित इंग्लिश भाषासे विनयजी काफी प्रभावित हुए। किसी छोटेसे गाँव का एक किसान इंग्लिश भाषाकी इतनी जानकारी रखता होगा इस बातसे उन्हें काफ़ी अचरज हुआ। इस पार्श्व भूमीपर हमारे परिवारका उनसे परिचय हुआ। मेरा परिवार बडाही उदार मतवादी मुस्लिम परिवार था/है। उस समय विनय के किसी परिवालोंसे हमारा मिलनेका इत्तेफाक नही हुआ था। उनका परिवार देहलीमे था। मंझले भाई जो आर्मी मी थे,जयपुर पोस्टेड थे। बड़े भी देहलीमे एक बैंक मी काम करते थे।उनके माँ-पिताजी कभी आर्मी वाले बेटेके साथ रहते तो कभी देहलीमे सबसे बड़े बेटेके साथ। भारत-पाकिस्तान के दुभाजन मी उनका काफी कुछ खो गया था। माता पिता अपने बच्चों परही निर्भर थे,जब बच्चे कमाने लायक हुए। ये सब मुझे धीरे पता चलता गया।
मैं पहली बार विनयजी से मिली तो उन्हीके सरकारी निवास स्थानपे पे।चार लकडी के बून्धें, चार मेटल की कुर्सियाँ,और एक टेबल। बैठक मी बस इतनाही फर्नीचर था। बेडरूम मी क्या था ये बातों-बातों मी हमे बताया गया। एक खुला लकडी का रैक और एक निवाड़ का पलंग...बस इतनाही।खैर!!पहली मुलाक़ात के दिन(मेरी पहली मुलाक़ात)हमारे सामने अनारका रस रखा गया। अनार खानेमे तो मुझे पसंद था, लेकिन उसका रस नही। वोभी बीज के साथ पिसा हुआ,और अनारभी पूरे पके हुए नही!!वो रस मेरे गलेके नीचे उतर नही रहा था!!किसितरह से ख़त्म किया। किसी पुलिसवाले से ये मेरा पहला encounter था।!!

4 comments:

Udan Tashtari said...

बढ़िया है..अभी तो कहानी जारी है, क्रमशः लिखना रह गया है अंत में :)

दिनेशराय द्विवेदी said...

अंकुर एक उगा है,
लगता है
सुन्दर, गुणकारी
होगा पौधा,
देखे जाएँ हम।

अनूप शुक्ल said...

पहली बार आपका ब्लाग देखा। अच्छा लगा। पहले इन्काउन्टर के बाद की कहानी सुनने का इंतजार है।

अजय कुमार झा said...

bahut achha shama jee, kehne ke andaaz mein wo baat hai ki pyaas badhtee jaa rahee hai.padhte rehne kee, aap likhtee rahein.