"मीना,
इतने सालोंबाद तुम्हारे नाम के आगे क्या संबोधन लिखूं, नही जनता। लेकिन इतने सालोंबाद हिदोस्तान और फिर रामनगर खींच लानेवाली तुम्ही हो। मैं शाम जब रामनगर पोहोचा तो सीधे तुम्हारे घर आया। वहाँ आकर माजी के बारेमे ,नरेंद्र के बारेमे पता चला। मुझे बेहद दुःख हुआ। पता नही, इतने साल तुमने किस तरह अकेले काटे होंगे!!तुम भी घरपर नही हो सो मैंने होटल मे ठहरने का इरादा लिया है। चिट्ठी तुम्हारे बूढ़े नौकर रामूको देकर जा रहा हूँ। होटल का कार्ड साथमे है। तुमसे मिलनेकी बेहद इच्छा,इंतजार है। आशा है तुम चिट्ठी पढ़ही मुझसे सम्पर्क ज़रूर करोगी।
तुम्हारा
स्टीव"
मीनाक्षी दौड़ते हुए हवेली के पिछवाडे गयी जहाँ रामूकाका का घर था और उन्हें ज़ोर जोरसे आवाज़ लगाके जगाया,"रामू काका!!ये चिट्ठी आयी थी और तुमने मुझे तुरंत बताया क्यों नही?"
रामूकाका hadbada के बोले "बहूजी , मैंने आपके लिखने वाले कमरे मे रखी थी। फिर दो बार मैं आपसे कहने कमरेमे झांक गया। आप लिखने मे एकदम खो गईँ थीं। मेरी आवाज़ भी नही सुनी, इसलिये उल्टे पैर लॉट गया। सोंचा,सवेरेही बता दूंगा।"
"अच्छा,अच्छा,अब ड्राइवर को तुरंत इस होटल के पतेपे भेजो। वहां स्टीव साहब रुके हैं, उन्हें लाना है,"कहते हुए उसने रामूकाका को होटल का कार्ड थमाया। फिर दौड़ी आकाशनीम की तरफ। तना पकड़ के उसे झकझोरा । सफ़ेद,सुगन्धित फूलोंकी वर्षा हो गयी। महक छा गयी। स्टीव आ गया था। उसका स्वागत करना था। अब उन्हें कोयीभी शक्ती दूर नही करेगी। नियती के घटना क्रम मे वो नियत क्षण आ गया था। वो हारी नही थी। उसने उस सुबह की, उस सुहाने सूर्योदयकी प्रतीक्षा की थी जो जल्द ही होनेवाला था। एक निश्चित उषा:काल ,सिर्फ भीक मे मिली सूरज की बिछडी किरण नही,शामकी लालिमाकी लकीर नही।
समाप्त
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1 comment:
बहुत आश्चर्यजनक एवं सुखद अंत -- शास्त्री जे सी फिलिप
आज का विचार: हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
इस विषय में मेरा और आपका योगदान कितना है??
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