Friday, September 21, 2007

एक खोया हुआ दिन

अपने बेडरूम मे बिस्तर बनानेसे पेहेले वो रसोई की ओर पतिदेव का डिब्बा तैयार करनेके लिए गयी। इसके लिए उसे रात के कुछ बरतन मांझने पडे। फिर उसने जल्दी-जल्दी कुकर चढाया। सब्जी काटी। एक ओर सब्जी बघारके रायता बनाया। कुकर उतारकर रोटियां बेलने लगी। तबतक पतिदेव कभी अखबार पढ़ रहे थे तो कभी चैनल सर्फिंग, या फिर आराम कुर्सीपे केवल सुस्ता रहे थे। अंतमे वे नहाने के लिए उठे। डिब्बा तैयार करके वो नाश्ता बनानेमे जुड़ गयी। वो बाथरूम मे घुसने के बाद पहले शेव करेंगे, फिर नहायेंगे,ये सोंचकर उसने झटपट अपने बेडरूम का बिस्तर बाना लिया।

तभी बाथरूम का दरवाज़ा थोडा सा खोलकर वो चिल्लाये,"उफ़! मेरा तौलिया नही है यहाँ! हटाती हो तो तुरंत दूसरा रखती क्यों नहीं? और बाज़ार जाओ तो मेरा साबुन भी लाना। तकरीबन ख़त्म हो गया है। कल भी मैंने तुमसे कहा था। पतिदेव तुनक रहे थे।

बिल्कुल आखरी समय नहाने जातें हैं और फिर सारा घर सर पे उठाते है। कौन समझाए इन्हें? वो झट से tauliya ले आयी। अब किसीभी क्षण बाहर आएंगे और नाश्ता मांगेंगे । उसे खुद सुबह से चाय तक पीनेकी फुर्सत नही मिली थी। उसे फुर्सत मे चाय पीनी अच्छी लगती थी और सुबह फुर्सत नाम की चीज़ ही नही होती थी। एक ज़मानेमे चाय का मग हाथ मे पकड़ कर वो काम करती थी, फिर उसने वो आदत छोड़ ही दीं।

पती के नाश्ते के लिए उसने आमलेट की तैयारी और उसे तलने के लिए डाला। पतिदेव बेडरूम मे आ गए थे। तभी फ़ोन की घंटी बजने लगी।

"ज़रा फ़ोन उठाएंगे आप?"उसने पूछा।

"तुम ही देखो ,और मेरे लिए हो तो कह दो मैं निकल चुका हूँ,"आख़िर फ़ोन के लिए वही दौड़ी। फ़ोन बेहेनका था। अमेरिकामे रहनेवाली,उनकी जानसे प्यारी मासी चल बसी थी,अचानक। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। मासी के साथ बिताये कितनेही पल आंखों के सामने दौड़ गए। दोनो बहने फोनपे रो रही थी। लेकिन पतिदेव शोर मचाके उसे वर्तमान मे ले आये।

'सुबह,सुबह इतनी देर फ़ोन पे बात करना ज़रूरी है क्या? तुम्हें गंधभी नही आती?? टोस्ट जल गए,आमलेट जल गया।"

"तुझे बाद मे फ़ोन करूंगी " कहकर उसने फ़ोन रख दिया।

उसकी आंखों की ओर देख के पतीजी ने पूछा,"अब क्या हुआ?"

"मासी चल बसी,दीदी का फ़ोन था।"

"ओह! सॉरी! लेकिन अब समय नही है, मैं चलता हूँ,"पती बोले।

"सुनो, मैं टोस्ट लगती हूँ, सिर्फ मक्खन टोस्ट खाके जाओ,"उसने आग्रह किया।

"नही कहा ना! मैं सुबह कितनी जल्दी मे होता हूँ ये तुम अच्छी तरह जानती हो,"कहकर उन्होने ब्रीफ केस उठाया और चले गए।

2 comments:

उन्मुक्त said...

Shama ji
Communication by way of comments on the blog is not good idea of communication. My email is
unmukt.s@gmail.com
Please send me email so that I can communicate with you. It is also mentioned in my blog.
It appears that people do not know about your posts and as such are not commenting on your posts.Please do the following things:
1. Comment on posts of other bloggers so that they may come to know about your blog.
2. Please get your self registered on the following feed aggregators. So that people may get knowledge of your posts.
http://www.filmyblogs.com/hindi.jsp
http://chitthajagat.in/
http://narad.akshargram.com/
http://blogvani.com/
http://hindi-blog-podcast.blogspot.com/
It is easy to get your self registered there. You have to inform them.
Unmukt

shama said...

Dhanywad,Unmuktji!Mai aapko tatha itar logonko e-mail karungi.
Shama