आँसू भरी आँखोंसे उसने मैले कपडे साबुन मे भिगोए,झाड़ू लगाई,बरतन मांझे। फिर भिगाये हुए कपडे धो डाले। नहानेके बादभी बड़ी रुलाई आ रही थी,लेकिन समय कहॉ था? दालें सब्जी आदी लानेके बाद पी. टी .ए की मीटिंग मे जाना था,उसीमेसे समय निकालकर दो निवाले खाने थे।
सहेलीकी सास से भी मिलना था,या फिर उनसे कलही मिला जाय?आज आसार नज़र नही आ रहे थे।
वो पी.टी.ए.की मीटिंग के लिए स्कूल पोहोंची। वहाँ उसको ख़याल आया कि बिटियाको अच्छा खासा बुखार चढ़ा हुआ था। घर लॉट ते समय वो बिटिया को डाक्टर के पास ले गयी। डाक्टर ने ख़ून तपासने के लिए कहा। रिपोर्ट दुसरे दिन मिलेगी। लेकिन डाक्टर को मलेरिया की शंका थी। हे भगवान्! बच्चों का यूनिट टेस्ट तो सरपर था। लेकिन कोई चारा नही था। वो घर पोहोंची। बच्चों के कपडे बदले। बच्ची को बिस्तरपर लिटाया। दवाई दीं। उसके सरमे दर्द था,सो थोडी देर वो पास बैठकर दबाने लगी। कुछ देर के बाद बच्ची की आंख लग गयी। उसके पास वो स्वयम भी लेटी। लेकिन तभी कॉल बेल बजी। कौन होगा इस वक़्त सोचते हुए उसने दरवाज़ा खोला तो माजी खडी थी। वे अपनी बहेन के पास हफ्ताभर रेहनेके इरादेसे गयी थी, लेकिन पैर मे मोंच आनेके कारण लॉट आयी। वहाँ देखभाल करनेवाला कोई नही था। वो उन्हें उनके कमरेमे ले गयी। पैरपे लेप लगाया। तबतक दोपहर के साढेचार बज रहे थे। उसने दो कप चाय बनाई। माजी का पैर काफी सूज रहा था,इसलिये उसने पती को फ़ोन पे कहा के घर लॉट ते समय डाक्टर को ले आयें।
फिर वो अपनी बिटिया को देखने गयी। उसका माथा बोहोत गरम लगा इसलिये ठंडे पानीकी पट्टियां रखना शुरू की। उसके पैरोंके तलवे भी ठंडे पानीसे पोंछे। रातमे क्या भोजन बनाया जाय येभी वो मनही मन सोंच रही थी। बिटिया को खाली पेट दवाई नही देनी थी पर वो क्या खायेगी इस बातकी उसे चिंता थी। अंत मे उसने खिचडी बनाई। घियाकी सब्जी बनाई। इन दोनो चीजोंको माजी हाथ भी लगायेंगी ये उसे मालूम था। उनके लिए उसने पालक पूरियोंकी तैयारी की और तभी उसके ध्यान मे आया, कि वो दही जमाना भूल गयी थी। वे बिना दहीके पूरियां खाने से रही! और दहीभी घरका जमाया हो। सोंचते,सोंचते उसने बेटेका स्कूल बैग खोला। डायरी चेक की। तय ना होनेका रिमार्क थाही। होम वर्क ज़्यादा नही था। उसने बेटे को टी.वी. के सामने से उठाया। वो छुटका होमवर्क के लिए तंग नही करता था।
दही के लिए उसने अपनी एक सहेली को फ़ोन लगाया। दही कैसे जमाना वो सहेली इसीसे सीखी थी। सहेली दही देके चली गयी। पती डाक्टर को लेकर घर आये। उन्होने माजीके पैरको एलास्टोप्लास्त लगाया। ये सब हो जानेपर उसने बिटिया को थोडा सा खाना खिलाया। बेटे को खाना परोस कर वो सामने बैठी रही। उसने थोडा नाटक करते हुए खाना खाया। पती अपनी माँ के पास बैठे थे। उन दोनो का खाना उसने माजी के कमरेमेही परोसा,फिर बोली,"आप आप माजी के कमरे मे ही सो जयिये। रात मे उन्हें बाथरूम जाने मे अन्यथा मुश्किल होगी"।
उसने स्वयम बच्चों के कमरे मे सोने का सोंचा।
सब निपट्नेके बाद उसने थोड़े बरतन मांझे। जब सब सो गए तो वो अपनी सहेलीसे बडे दिनोसे एक किताब लाई थी,उसे पढने लैंप जलाकर आराम से कुर्सी पर बैठ गयी। तभी बिजली गुल हो गयी। ज़िन्दगीका एक और दिन अपनी हाजरी लगाकर खो गया।
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4 comments:
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इसे आप सारथी के शीर्ष पर दिये गये मेनु में देख सकते है.
आज हम ने आप का एक चिट्ठा यहां जोड दिया है.
कृपया इसे जांच लें कि यह सही है क्या.
यदि आप के और भी कोई चिट्ठे हैं जिनको आप यहां जोडना
चाहते हैं तो निम्न जानकारी भेज दे:
चिट्ठानाम
जालपता
पांच या छ: शब्दों का परिचय
जैसे ही यह जानकारी हम को मिल जायगी, वैसे ही इसे
सारथी पर जोड देंगे. आप को कुछ और नहीं करना होगा.
-- शास्त्री जे सी फिलिप
हिन्दीजगत की उन्नति के लिये यह जरूरी है कि हम
हिन्दीभाषी लेखक एक दूसरे के प्रतियोगी बनने के
बदले एक दूसरे को प्रोत्साहित करने वाले पूरक बनें
This is not a comment but only a mail. There is no other way to communicate with you as I do not know your email.
This is to say thanks for the note you sent this week via Tarangen, my blog.
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Shastri
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