Wednesday, September 5, 2007

आकाशनीम

कुछ देर बाद नरेन्द्र ने कहा,"अच्छा,मुझे अब कुछ देर स्टूडियो मे काम करना है। स्टीव, मीना तुम्हे तुम्हारा कमरा दिखा देगी और तुम्हे जहाँ घूमना है, घुमा भी देगी। दोगी ना मीना? दोस्त,तुम ऐसे समय आये हो जब मैं अपनी प्रदर्शनी के काम मे बेहद व्यस्त हूँ। आशा है मुझे माफ़ करोगे। "

"बिलकूल! तुम अपना काम करो मैं अपना!,"स्टीव ने कहा था और हम स्टूडियो से बाहर निकल आये थे। मैंने पेहेले स्टीव को उसका कमरा दिखाया। फिर कुछ देर रसोई मे लगी रही,कुछ देर पूर्णिमा के साथ, कुछ देर माँ जीं के साथ। बाद मे मैंने स्टीव के कमरे पे दस्तक देके पूछना चाहा कि कहीं उसे किसी चीज़ की आवश्यकता तो नही। देखा तो वो बरम्देमे बैठ निस्तब्ध उस दिशामे देख रहा था जहाँ पहडियोंकी ओटमे सूरज बस डूबने ही वाला था। पश्चिम दिशा रंगोंकी होली खेल रही थी।

अनायास मैं कमरा पार करके वहाँ चली गयी और धीमेसे बोली,"मुझेभी यहाँ सूर्यास्त देखना बोहोत अच्छा लगा था, कल इसी आकाशनीम की महक की पार्श्वभूमी मे। तुम्हे जान के हैरत होगी कि तीन साल के वैवाहिक जीवन मे मैं इस तरफ पहेली बार आयी और वो दृश्य इतना मनोरम था कि मैंने एक कविता भी लिख डाली। अपने जीवन की पहली कविता और शायद अन्तिम भी। "

"सच! क्या मैं सुन सकता हू वो कविता?" स्टीव ने बड़ी उत्सुकता और भोलेपन से पूछा।

"अरे! वो तो हिंदी मे है! उसका तो मुझे भाषांतर सुनना होगा, जोकी काफी गद्यमय होगा!,"मैंने कहा।

"कोई बात नही,सुनाओ तो सही,भाषांतर से आशय तो नही ,"स्टीव बोला।

मैंने वहीं रखे बुक शेल्फ परसे डायरी निकाली और उस कविताका भावार्थ सुनाने लगी, 'रौशनी की विदाई का समय कितना खूबसूरत होता है,लेकिन कितना दुखदायी भी।

धीरे,धीरे जब ये मखमली अँधेरा अपनी ओटमे सारा परिसर घेर लेटा है तो लगता है कभी फिर उजाला भी होगा?

क्या यही अँधेरा अन्तिम सच है या या फिर वो लालिमा जिसने पीछे डूबे गरिमामय दिनकी दास्ताँ सुनाई और फिर अँधेरे मे मिट गयी?

शायद हर किसीका सच अपना होता है। उसका अपना नज़रिया, उसका अपना उनुभाव।

मेरे जीवन मे डूबा सूरज फिर से निकला ही नही। मेरे मनके अँधेरे मे किरणों का फिर कहींसे प्रवेश ही नही।

ए शाम! मैं आज अपने मनके सारे द्वार खोल दूंगी ।

तू अपनी लालिमा की सिर्फ एक किरण मेरे लिए छोड़ जा।"

स्टीव की ओर मैंने देखा तो वो अपलक मुझे निहार रहा था। फिर बोला,"काश मैं हिंदी भाषा समझ पाता! खैर! ये तो समझ रहा हूँ कि इस कविताके पीछे सुन्दरता के अलावा असीम दर्द भी छुपा हुआ है, कारण नही जनता, लेकिन इस कविता पर एक चित्र ज़रूर बनाउंगा। अभी,आज रात मे," कह के उसने अपनी चित्र कला का सारा समन निकला, फिर बोला,"मुझे वाटर कलर अधिक अछे लगते है। क्या नरेन्द्र के साथ रहते तुम भी दो चार स्ट्रोक्स मारना सीख गयी हो या नही?"

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