क्या उसकी किसीने दिशाभूल कर दीं थी? ये रास्ता ख़त्म क्यों नही हो रहा था?हर थोडी देर बाद वो किसीसे दिशासे दिशा पूछ रही थी। उसकी मंज़िल की दिशा। कोई दाहिने जानेको कहता तो कोई बाएं मुड़ नेको कहता। वो बेहद थक गयी थी, लेकिन् अब बीचमे रुकनाभीतो मुमकिन भी तो नही था। लेकिन उसे जान कहॉ था? अचानक वो खुद भूलही गयी। अब वो घबराहट के मारे पसीने पसीने हो गयी। अब क्या किया जाय?और क्या आवाज़ है ये?इतनी कर्कश! उफ़! बंद क्यों नही हो रही है? और फिर वो अचानक नीन्द्से जग पडी। वो अपने बिस्तरमे थी और वो आवाज़ दरवाज़ेकी घंटीकी थी। तो वो क्या सपना देख रही थी! उसने राहत की सांस ली!!
वो झट से उठी , ड्रेसिंग गाऊंन पहना और दरवाज़ा खोला। दूध लानेवाला छोकरा दरवाज़पर दूध की थैलियाँ छोड़ गया था। उसने उन्हें उठाया और रसोई घरमे रख दिया। बाथरूम मे जाकर मूह्पे पानी मारा,ब्रुश किया और बच्चों के डिब्बेकी तैय्यारिया शुरू की। कल दोनोने आलू-पराठें मांगे थे। आलू उबलने तक उसके पतीभी उठ गए। "ज़रा चाय बनाओ तो तो,"पतीकी आवाज़ आयी। उसने चायके लिए पानी चढाया और एक ओर दूध तपाने रख दिया और झट बच्चों को उठाने उनके कमरेमे पोहोंची।
पेहेले बिटिया को उठाने की कोशिश की, लेकिन,"रोज़ मुझेही उठाती हो! आज संजूको उठाओ ,"कह कर वो अड़ गयी।
"बेटा, तुम्हारी कंघी करनेमे देर लगती है ना इसलिये तुम्हे उठाती हूँ, चलो उठोतो मेरी अच्छी बिटिया,"उसने प्यारसे कहा।
"नही,आज उसेही उठाओ,"कहकर बिटियाने फिरसे अपने ऊपर चद्दर तान ली।
अन्त्मे उसने संजू को उठाया। वो आधी नींद मे था। उसका हाथ पकड़ के वो उसे सिंक के पास ले गयी और उसके मूह्पे पानी मारा तथा हाथ मे ब्रुश पक्डाया । गीज़र पहलेही चला रक्खा था। चाय बनाने के लिए वो मुड्नेही वाली वाली थी कि फिर दरवाज़ेकी घंटी बजी। दरवाज़ा खोला तो अख़बार पडे देखे। कामवाली बाई अभीतक क्यों नही आयी?उसके मनमे बेकारही एक शंकाने सिर उठाया। वो फिर रसोई की ओर भागी। पानी खुल रहा था। उसने झट से चाय बनायी और अपने पती को पकडा दीं । वह अखबार लेकर ड्राइंग रूम मे चाय पीने लगा।
बच्चों के कमरेमे क्या चल रहा है ये देखने के लिए वो फिर उस ओर मुड्नेही वाली थी कि तभी फिर बेल बजी।
"अमित ज़रा देखोना, कौन है! बाई ही होगी!,"वो इल्तिजाके सुर मे बोली।
"कमाल करती हो! तुम खडी हो और मुझे उठ्नेको कहती हो,"पतिदेव चिढ़कर बोले।
उसने दरवाज़ा खोला तो बाई की लडकी खडी थी।
"अरे,तू कैसे आयी?"
"माँ बीमार है,वो तीन चार दिन नही आयेगी,ये बताने आयी,"लडकी ने जवाब दिया।
इस लडकी को इसी ने स्कूल मे प्रवेश दिलवाया था। बाई नही आयेगी ये सुनकर उसका मूड एकदम खराब हो गया। आज पी.टी.ए.की मीटिंग थी। सहेली की सास बीमार थी,उसेभी मिलने जान था। रात के खाने के लिए सब्जियाँ लानी थीं। उसका वाचन तो कबसे बंद हो गया था। बाई की लडकी तो कबकी चली गयी लेकिन वो अपने खयालोंमे खोयी हुई दरवाज़ेपर्ही खडी रही। अचानक उसे रसोयीमेसे बास आयी। दूध उबल रहा था। वो दौड़ी। गंध पतीको भी आयी। वो फिरसे चिढ़कर बोले, 'क्या,कर के रही हो?कहॉ ध्यान है तुम्हारा?तुम्हे पता हैना कि दूध उबल जाता है तो मुझे और माको बिलकुल अच्छा नही लगता?"
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1 comment:
एक खोया हुआ दिन बेहद शानदार और भावपूर्ण प्रस्तुति रही। तुमने कहा था न कि मैं इसे पढूं, इस पर एक शार्ट फिल्म बन सकती है 30 मिनट की। यह भारत के हर मध्यमवर्गी का चेहरा है जब हम औरतो को केवल एक आवश्यकता भर समझ लेते है। लेकिन उस अंतरमन की तरफ हमारा कभी ध्यान ही नही जाता जो अपने भरे-पूरे जीवन से सूखता चला जाता है।
बहुत खूब।
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