Saturday, June 2, 2007

खिलने वाली थी...

खिलनेवाली थी नाज़ुक सी
डालीपे नन्हीसी कली
सोंचा डालीने,ये कल होगी
अधखिली,परसों फूल बनेगी,
जब इसपे शबनम गिरेगी,
किरण मे सुनहरी सुबह की
ये कितनी प्यारी लगेगी!
नज़र लगी चमन के माली की,
सुबह से पहेले चुन ली गयी
खोके कोमल कलीको अपनी
सूख गयी वो हरी डाली॥

लेखिका:किसीभी लेखन का कहीँ और बिना इजाज़त इस्तेमाल ना करें। ये कानूनन गुनाह है।

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