Saturday, June 23, 2007

एक ललकार...

किस नतीजेपे....श्रुन्खालाकी तीसरी कडी


उठाये तो सही
मेरे घरके तरफ
अपनी बद नज़र कोई
इन हाथोंमे ग़र
कंगन सजे,
तो तलवार सेभी ,
तारीख गवाह है,
ये हरवक्त वाकिफ रहे!
इशारा समझो इसे
या एलाने जंग सही!
सजा काजलभी मेरी
आँखोमें, फिरभी
याद रहे अंगारेभी
बरसते है,पडी
ज़रूरत जब भी!
आवाज़ खामोशीकी
सुनते नही,
तो फिर ललकार ही
सुनो,पर कान खोलके,
इंसानियत के दुशमनो!
अपनी हदमे रहो!
चूड़ियाँ टूटी कभी
पर मेरी कलाई नही!
सीता सावित्री हुई
तो साथ चांद बीबी
झांसीकी रानीभी!
अबला माना मुझे
पर मुझ से बढ के
कोई सबला भी नही!
लाज से ग़र झुकी
चिलमने मेरी
मत समझो मुझे
नज़र आता नही!
मेरे घर मे रेहेके
छेद करता है
थालीमे कोई,
खानेमे नमक के
बदले विषभी
मिला सकती है वही!
हिरनी हूँ लेकिन
बन सकती हूँ
कातिल शेरनी भी!
जिस आवाज़ ने
लोरी सुनाई,
मै हूँ वो माँभी
संतानको सताए
तो कोई,
चीरके ना रख दूँ
सीने कयी!!


निवेदन:इस लेखन का बिना इजाज़त अन्यत्र उपयोग ना करें,ये नम्र बिनती है!

2 comments:

अंकुर said...

आवाज़ खामोशीकी
सुनते नही,
तो फिर ललकार ही
सुनो,पर कान खोलके,
इंसानियत के दुशमनो!
अपनी हदमे रहो!
चूड़ियाँ टूटी कभी
पर मेरी कलाई नही!
shama ji kuch lines to itni dumdar hain ki main kuch kah nahi sakta,ab mujhe inhe aage lekar jana hai,aapko shubhkanaye itni acchi soch ke liye

!!अक्षय-मन!! said...

मै हूँ वो माँभी
संतानको सताए
तो कोई,
चीरके ना रख दूँ
सीने कयी!!
jhasi ki rani bas yahi khna chahuin ga aapke liye.....