Monday, June 4, 2007

पहलेसे उजाले...

छोड़ दिया देखना कबसे
अपना आईना हमने!
बड़ा बेदर्द हो गया है,
पलट के पूछता है हमसे
कौन हो,हो कौन तुम?
पहचाना नही तुम्हे!
जो खो चुकी हूँ मैं
वही ढूंढता है मुझमे !
कहाँसे लाऊँ पहलेसे उजाले
बुझे हुए चेहरेपे अपने?
आया था कोई चाँद बनके
चाँदनी फैली थी मनमे
जब गया तो घरसे मेरे
ले गया सूरज साथ अपने!

निवेदन:कृपया बिना इजाज़त किसीभी लेखन का अन्यत्र इस्तेमाल ना करे।

7 comments:

शैलेश भारतवासी said...

शमा जी,

हिन्दी के एक गूगल ग्रूप की मदद से आपके इस ब्लॉग की सूचना मिली। आपकी कविताओं का संकलन अच्छा है। आप जैसे हिन्दी कवियों के लिए हम लोगों ने हिन्द-युग्म यूनिकवि एवम् यूनिपाठक प्रतियोगिता का आयोजन करते हैं। कभी फुरसत में उधर आइए और हमारे इस प्रयास में अपना साथ दीजिए। हम आपके ब्लॉग का लिंक हिन्द-युग्म से जोड़ रहे हैं।

धन्यवाद।

निर्झर'नीर said...

bahot hi marmsparshii
bhaavo ko bahot khoobsurtii se lafzoN mai piroya hai aapne
yakinan dard ko lafzoN mai bahaya hai

daad hazir hai

Akhileshwar Pandey said...

मेरा आईना मुझमें अपनी सूरत देखे की ध्‍वन‍ि से लबरेज आपकी कविता में जिंदगी की असीम संभावनाएं हैं।
इतना कहना चाहूंगा-
जिंदगी के जोत को जलाएं रखो,
उजाला इंतजार में है।
रिश्‍तों के डोर को टूटने मत देना,
यह रिश्‍ता तुम्‍हारे अख्तियार में है।
अखिलेश्‍वर पांडेय

Anonymous said...

मेरा आईना मुझमें अपनी सूरत देखे की ध्‍वन‍ि से लबरेज आपकी कविता में जिंदगी की असीम संभावनाएं हैं।
इतना कहना चाहूंगा-
जिंदगी के जोत को जलाएं रखो,
उजाला इंतजार में है।
रिश्‍तों के डोर को टूटने मत देना,
यह रिश्‍ता तुम्‍हारे अख्तियार में है।
अखिलेश्‍वर पांडेय

Anonymous said...

बड़ा बेदर्द हो गया है,
पलट के पूछता है हमसे
कौन हो,

badi hi dardeelee rachana.

-------------------------"VISHAL"

महावीर said...

पलट के पूछता है हमसे
कौन हो,हो कौन तुम?
पहचाना नही तुम्हे!
जो खो चुकी हूँ मैं
वही ढूंढता है मुझमे !
बहुत सुंदर!
महावीर शर्मा

'sammu' said...

mat poonch vo pahle ke ujale kahan gaye,
ummed rakh ke aayenge, kuch intezar kar.

aayine se mat poonch , vo dekhega tujhko kya ?
meree nazar se poonch, vahee fir singar kar.

ek baar fir se khud ko bhee, vaise sanwar kar .
ek bar dil ko fir se jara bekrar kar .