कहॉ हो?खो गए हो?
पश्चिमा अपने आसमाके
लिए रंग बिखेरती देखो,
देखो, नदियामे भरे
है सारे रंग आस्मानके
किनारेपे रुकी हू कबसे
चुनर बेरंग है कबसे,
उन्डेलो भरके गागर मुझपे!
भीगने दो तन भी मन भी
भाग लू आँचल छुडाके,
तो खींचो पीछेसे आके!
होती है रात होने दो
आंखें मूंद्के मेरी पूछो
कौन हू?पहचानो मुझे!
जानती हु,खुद्से बाते
कर रही हू, इंतज़ार मे
खेलसा खेलती हू दिलसे,
हर पर्छायी लगे है
इस तरफ आ रही हो जैसे,
घूमेगी नही राह इस ओरसे
अब कभी भी तुम्हारी
जानकेभी नही हू मानती,
हो गयी हू पागलसी,
कहते सब पडोसी
पर किसके लिए हू हुई,
दुनिया हरगिज़ नही जानती...
Friday, June 1, 2007
कहॉ हो?
लेबल:
hindi,
hindi blog,
original,
poem,
prose,
जिन्दगी,
दुःख,
हिंदी कविता,
हिंदी ब्लॉग,
हिंदी लेख
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment