जिनके नज़ारोंके लिए
हम तरसते रहे,
जब हुए वो नज़ारे
इतने डरावने हुए
उफ़ !कहते ना बने!
सोंचा था चारागर वो है
पुराने,जाने पहचाने
ज़ख्मोंपे मरहम करेंगे!
वो तो हरे घावोंपे
और खरोंचे दे गए!
निवेदन लेखिकाकी ओरसे: इस लेखन का कहीं भी दूसरी जगह बिना इजाज़त इस्तेमाल ना करें। ये कानूनन जुर्म है।
Saturday, June 2, 2007
उनके नज़ारे...
लेबल:
hindi blog,
lekh,
जिन्दगी,
दुःख,
हिंदी,
हिंदी कविता,
हिंदी चिट्ठा,
हिंदी ब्लॉग,
हिंदी लेख
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment