Friday, June 1, 2007

दरख़्त ऊंचे थे...

तपती गरमीमे हमने देखे
अमलतास गुलमोहर
साथ खडे,पूरी बहारपे!
देखा कमाल कुदरत का,
घरकी छयामे खडे होके!
तपती गरमी मे देखे...

हमतो मुरझा गए थे
हल्की-सी किरण से!
बुलंद-ए हौसला कर के
खडे हुए हम धूप मे जाके!
तपती गरमी देखे...

दरख़्त खुदा के करिश्मे थे!
हम ज़मीं के ज़र्रे थे!
कैसे बराबरी की उनसे ?
वो हमसे कितने ऊँचे थे!
तपती गरमी मे देखे...

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