तपती गरमीमे हमने देखे
अमलतास गुलमोहर
साथ खडे,पूरी बहारपे!
देखा कमाल कुदरत का,
घरकी छयामे खडे होके!
तपती गरमी मे देखे...
हमतो मुरझा गए थे
हल्की-सी किरण से!
बुलंद-ए हौसला कर के
खडे हुए हम धूप मे जाके!
तपती गरमी देखे...
दरख़्त खुदा के करिश्मे थे!
हम ज़मीं के ज़र्रे थे!
कैसे बराबरी की उनसे ?
वो हमसे कितने ऊँचे थे!
तपती गरमी मे देखे...
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