हर बार लुट ने से पहेले सोंचा
अब लुट ने के लिए क्या है बचा?
पता नही कहॉ से खजाने निकलते गए?
मैं लुटती रही ,लुटेरे लूट ते गए!
हैरान हू,ये सब कैसे कब हुआ?
कहॉ थे मेरे होश जब ये सब हुआ?
अब कोई सुनवायी नही,
गरीबन !तेरे पास था क्या
जो कहती है लूटा गया,
कहके ज़माना चल दिया
मैं ठागीसी रह गयी
लुटेरा फिर आगे निकल गया...
कविताये बिना इजाज़त के छापना या कही और प्रसिद्ध करना कानूनन जुर्म है।
लेखिका.
Friday, June 1, 2007
लुटेरे
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1 comment:
बढिया भावपूर्ण रचना है।बधाई।
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