Friday, June 1, 2007

इस तरह आ..

सुन मौत!तू इसतरह आ
हवाका झोंका बन,धीरेसे आ!
ज़र्रे की तरह मुझे उठा ले जा
कोई आवाज़ हो ना
पत्ता कोई बजे ना
चट्टानें लाँघ के दूर लेजा !
किसीको पता लगे ना
डाली कोई हिले ना
आ,मेरे पास आ,
एक सखी बन के आ,
थाम ले मुझे
सीनेसे लगा ले,
गोदीमे सुला दे,
थक गयी हूँ बोहोत,
मीठी सी लोरी,
गुनगुना के सुना दे!
मेरी माँ बन के आ ,
आँचल मे छुपा ले !

लेखिका:इस लेखन का बिना इजाज़त कहीं और chhapaayee के के लिए इस्तेमाल ना करे। ये कानूनन गुनाह है।

1 comment:

परमजीत सिहँ बाली said...

आप से एक निवेदन,आप निराशावादी मत बनें।जीवन में उतार-चड़ाव तो आते-जाते रहते हैं।