Friday, June 1, 2007

आंखें ...

आंखें भी क्या चीज़
होती है ,
सोंचा है कभी?
मुस्कुराना चाहू तो
नम होती है!
दर्द छुपाने के लिए
हँस भी देती है!
खुद तमाशा बनती है,
देखती है बनके तमाशायी
कुदरत का करिश्मा हैं
इसे रोकनेवाला धरा पे
पैदाभी हुआ कोई?

लेखिका की ओरसे :बिना इजाज़त कहींभी इस लेखन की छपाई ना करे. कानूनन गुनाह है।

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