सफरमे मुसाफिर मिलते है,
आपसमे पता पूछते है,
जब मंज़िल आती है,
अपनी दिशामे चल देते है!
पुर्ज़ेपे लिखा नामो पता
मरोड्के फेंक देते है!
रुकनेकी किसे फुर्सत है?
वो नाम,वो बांते,वो पता,
एक खेल ही तो होता!
सिर्फ दिल बेहलानेका
केवल ज़रिया भर होता,
अगले सफ़र मे दोहराया
बार बार है जाता,
हर बार नए मुसाफिर
हर एक को मिलते हैं
वही पुराना खेल
नए सिरेसे खेलते है...
लेखिका:बिना इजाज़त किसीभी लेखन का कँही और इस्तेमाल ना करे। ये कानूनन जुर्म है ।
Saturday, June 2, 2007
मुसाफिर..
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1 comment:
آپ اجازت دیں تو اس کو اردو اسکرپٹ میں لکھ کر آپ ہی کے نام سے پوسٹ کروں ؟
hyd2007@gmail.com
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